आईना-ए-शक्सियत के ज़रिए मैं आपके साथ अपने अनुभव, अपनी भावनाएं, अपनी ज़िन्दगी के पल फिर से जीने का प्रयास करुँगी....शायद कहीं इस आयने में आप को अपना "अक्स" नज़र आ जाये.....
Friday, August 13, 2010
"आशा"
जब लगने लगे तुम्हें यह ज़िन्दगी बेमानी सी,
रात की चाँदनी भी लगे काली सी,
रौशनी आँखों में चुभने लगे,
अपनी आवाज़ भी ख़ामोशी लगे,
टूटता सा हर सपना हो,
सब "अपने" पर कोई "अपना" न हो.....
आँखे मूँद लेना
तुम "मुझे" अपने पास ही पाओगे!
"मैं" तुम में हूँ
तुम्हारे मन के किसी कोने में दबी-दबी सी
हलके-हलके सांस लेती हुई,
मुश्किलों में तुम्हें हौसला देती
जीवन जीने के लिए प्रेरित करती हूँ
थाम लो हाथ मेरा
मैं और कोई नहीं
एक"उम्मीद"
एक "आस"
एक "आशा" हूँ.......
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मैं और कोई नहीं
ReplyDeleteएक"उम्मीद"
एक "आस"
एक "आशा" हूँ..
आशा बेशक जीवन का सहारा है वर्ना निराश लोग तो मृत सामान होते हैं.
bahut sundar.....asha ki kiran
ReplyDelete"मैं" तुम में हूँ
तुम्हारे मन के किसी कोने में दबी-दबी सी
हलके-हलके सांस लेती हुई,
मुश्किलों में तुम्हें हौसला देती
सुन्दर , वही तो जिन्दगी है ।
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