शाम ढलती रही
रात गहराती रही
सिलवटें यादों की,
परत दर परत
ज़ेहन में
करवटें बदलती रही
रोज़ तो मिलती हैं यह मुझ से
आज लगती हैं कुछ बदली हुयी
भागती हुयी सी यह ज़िन्दगी
लगता है थोड़ी धीमी हुयी
नींद की चादर बन कर,
यादें,
मीठे सपने संजोती रही
शाम ढलती रही
रात गहराती रही
सिलवटें यादों की,
परत दर परत
ज़ेहन में
करवटें बदलती रही...
मूँद कर आँखें
मैं चुपचाप इनके साथ चलती रही
देख कर इनकी दुनिया
लगा मुझे अपनी दुनिया है मिली
लेकर मुझे अपनी
बाहों में,
यादें,
सारी रात जागती रही
शाम ढलती रही
रात गहराती रही
सिलवटें यादों की,
परत दर परत
ज़ेहन में
करवटें बदलती रही....