Friday, June 25, 2010

कुछ यादें नमकीन सी.....


कुछ यादें नमकीन सी.....
कुछ मीठी सी और कुछ खट्टी भी......
आहट दे जाती हैं दिल के दरवाज़े पर....
खोलती हूँ जब....... न जाने कब से जो बंद है दरवाज़े.....
गिला करती हैं मुझसे....
कहती हैं इतनी देर क्यूं लगाई.....
क्या कभी मेरी "याद" नहीं आयी?
हंसती हूँ...मुस्कुराती हुयी कहती हूँ उनसे.....
"जुदा ही कब थी तुम मुझे से.....मन में बसती हो तुम...मेरी सांस में सांस लेती हुयी...
हर पल जीती हुईं...... एक अमिट एहसास बन कर"