आईना-ए-शक्सियत के ज़रिए मैं आपके साथ अपने अनुभव, अपनी भावनाएं, अपनी ज़िन्दगी के पल फिर से जीने का प्रयास करुँगी....शायद कहीं इस आयने में आप को अपना "अक्स" नज़र आ जाये.....
Friday, September 30, 2011
Tuesday, September 27, 2011
सुबह सुबह जब खिड़की खोली
सुबह सुबह जब खिड़की खोली
हवा ने पूछा....
पल भर को सो जांऊ
आँचल में छिपकर
रात भर करवटें बदलते हुए बीती हैं...
मैंने कहा
छिप जाओ आँचल में
इत्तेफ़ाक कहें या और कुछ
बेचैन रात मेरी भी गुज़्री है
सिमटकर आगोश में
मुझ से बोली
मैं तो करार पा जाऊँगी
तुम्हारी बेचैनी शायद
और बढ़ जाएगी...
मैंने कहा
इल्म कहाँ है तुम्हें
मुझे बेक़रारी में
क़रार मिलता है
यह सिलसिला
एक सदी से यू ही चलता है.......
हवा ने पूछा....
पल भर को सो जांऊ
आँचल में छिपकर
रात भर करवटें बदलते हुए बीती हैं...
मैंने कहा
छिप जाओ आँचल में
इत्तेफ़ाक कहें या और कुछ
बेचैन रात मेरी भी गुज़्री है
सिमटकर आगोश में
मुझ से बोली
मैं तो करार पा जाऊँगी
तुम्हारी बेचैनी शायद
और बढ़ जाएगी...
मैंने कहा
इल्म कहाँ है तुम्हें
मुझे बेक़रारी में
क़रार मिलता है
यह सिलसिला
एक सदी से यू ही चलता है.......
Thursday, March 3, 2011
मुस्कुराती शाम..
मुस्कुराती शाम..
रात के पेहलू में जाते-जाते
खुशनुमा कर चली पलों को कुछ इस तरह..
के चांदनी भी होठों तक आती हंसी को रोक न सकी,
हया से आँखों को बस मूँद लिया,
उस मीठे एहसास को
रात भर..
जी भर के जीया,
सुबह ने जब दस्तक दी
चाँदनी से,
थोड़ी सी शर्म सौगात मिली
और वो भी पलकें मूँद कर
शर्म से लाल हुयी....
यह कहानी शाम की..
चाँदनी में सिमटकर
सुबह परवान चड़ी....
रात के पेहलू में जाते-जाते
खुशनुमा कर चली पलों को कुछ इस तरह..
के चांदनी भी होठों तक आती हंसी को रोक न सकी,
हया से आँखों को बस मूँद लिया,
उस मीठे एहसास को
रात भर..
जी भर के जीया,
सुबह ने जब दस्तक दी
चाँदनी से,
थोड़ी सी शर्म सौगात मिली
और वो भी पलकें मूँद कर
शर्म से लाल हुयी....
यह कहानी शाम की..
चाँदनी में सिमटकर
सुबह परवान चड़ी....
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