Friday, September 30, 2011

आईना-ऐ-शक्सियत: कुछ पाकर खो भी गया तो क्या

आईना-ऐ-शक्सियत: कुछ पाकर खो भी गया तो क्या

कुछ पाकर खो भी गया तो क्या


कुछ पाकर खो भी गया तो क्या


ज़िन्दगी में हमेशा कुछ रहता तो नहीं

वक़्त भी चलता ही रहता है

वो कभी किसी के लिए रुकता तो नहीं

एक बार जो चला जाता है इस दुनिया से

वो कभी लौटकर आता तो नहीं

कहते हैं सभी

जीना है तो जी लो "आज" में

"कल" का क्या है

कल का कोई नाम पत्ता तो नहीं

Tuesday, September 27, 2011

कमी नहीं है खुदा के पास रहमतों की

कमी नहीं है खुदा के पास रहमतों की


क्या करे खुदा

सजदे में कभी उसके

इन्सां की नज़र नहीं झुकती

गिले शिकवे तो बहुत होते है खुदा से

करने के लिए

शुक्रिया अदा करने के लिए

मोहलत नहीं मिलती

इस क़दर गुम है इंसा

अपनी ज़िन्दगी में

खुदा की इबादत के लिए

फुर्सत नहीं मिलती....

ख़त खोला

ख़त खोला...कोरा एक कागज़ मिला

अलफ़ाज़ न थे....फिर भी न जाने क्यूँ ऐसा लगा
जज़बातो से खाली नहीं....आंसुओ से सीला
ख़ामोशी के लिबास में एक पैगाम है
जो अल्फाज़ो का मोहताज नहीं
एक धड़कता दिल है
जिसकी आवाज़ नहीं..........

सुबह सुबह जब खिड़की खोली

सुबह सुबह जब खिड़की खोली


हवा ने पूछा....

पल भर को सो जांऊ

आँचल में छिपकर

रात भर करवटें बदलते हुए बीती हैं...



मैंने कहा

छिप जाओ आँचल में

इत्तेफ़ाक कहें या और कुछ

बेचैन रात मेरी भी गुज़्री है



सिमटकर आगोश में

मुझ से बोली

मैं तो करार पा जाऊँगी

तुम्हारी बेचैनी शायद

और बढ़ जाएगी...



मैंने कहा

इल्म कहाँ है तुम्हें

मुझे बेक़रारी में

क़रार मिलता है

यह सिलसिला

एक सदी से यू ही चलता है.......

Thursday, March 3, 2011

मुस्कुराती शाम..

मुस्कुराती शाम..

रात के पेहलू में जाते-जाते

खुशनुमा कर चली पलों को कुछ इस तरह..

के चांदनी भी होठों तक आती हंसी को रोक न सकी,

हया से आँखों को बस मूँद लिया,

उस मीठे एहसास को

रात भर..

जी भर के जीया,

सुबह ने जब दस्तक दी

चाँदनी से,

थोड़ी सी शर्म सौगात मिली

और वो भी पलकें मूँद कर

शर्म से लाल हुयी....

यह कहानी शाम की..

चाँदनी में सिमटकर

सुबह परवान चड़ी....