Tuesday, November 9, 2010

आखरी सफ़र


ख़ामोशी और एक गहराता हुआ सा सन्नाटा
पीछे छोड़ चल देती है ज़िन्दगी
मुड़ के देखती नहीं
क्षण भर भी रूकती नहीं
आवाज़ देने पर भी सुनती नहीं
छोड़ जाती है
झोली भर के ऐसी यादें
जो ता-उम्र
ज़ेहन से मिटती नहीं
चल पड़ती है एक सफ़र ऐसा तय करने को
"ज़िन्दगी"
जिसकी वापसी नहीं...

7 comments:

  1. great....keep the good work going

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  2. बहुत सुंदर रचना.... कभी न रुकने वाले जिंदगी के सफ़र को बयां करती हुई....
    isitindya.blogspot.com

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  3. और कभी कभी उन यादो के सहारे ही चेहरे पर मुस्कराहट आ जाती है, जो जिंदगी के उन हसीन पलों को उजागर कर देती है, जो इंसान के सुख़ के दिनों में उसके साथी रहे.......
    sparkindians.blogspot.com

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  4. zindgi ki raho me yaaden hi to sirf apni hoti hai jise sari zindgi koi nahi chhin sakta hai. sunder rachna. dhanyabad.

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  5. @ All Thanks a lot for all d encouragement.

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