ख़ामोशी और एक गहराता हुआ सा सन्नाटा
पीछे छोड़ चल देती है ज़िन्दगी
मुड़ के देखती नहीं
क्षण भर भी रूकती नहीं
आवाज़ देने पर भी सुनती नहीं
छोड़ जाती है
झोली भर के ऐसी यादें
जो ता-उम्र
ज़ेहन से मिटती नहीं
चल पड़ती है एक सफ़र ऐसा तय करने को
"ज़िन्दगी"
जिसकी वापसी नहीं...
great....keep the good work going
ReplyDeleteThanks Vidhan..:)
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना.... कभी न रुकने वाले जिंदगी के सफ़र को बयां करती हुई....
ReplyDeleteisitindya.blogspot.com
और कभी कभी उन यादो के सहारे ही चेहरे पर मुस्कराहट आ जाती है, जो जिंदगी के उन हसीन पलों को उजागर कर देती है, जो इंसान के सुख़ के दिनों में उसके साथी रहे.......
ReplyDeletesparkindians.blogspot.com
marmshparsi rachna
ReplyDeletedil ko chhoo jati hai
zindgi ki raho me yaaden hi to sirf apni hoti hai jise sari zindgi koi nahi chhin sakta hai. sunder rachna. dhanyabad.
ReplyDelete@ All Thanks a lot for all d encouragement.
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