Friday, January 8, 2010

आईना-ए-शक्सियत

मेरा वजूद एक हथेली जैसा है,

कुछ उभरती हुयी लकीरें

मेरी शक्सियत के बारे में बहुत कुछ बयान करती हैं

और कुछ धुंदली-धुंदली सी लकीरें हैं

जिनके मायने मैं खुद ढूंढ रही हूँ

बहुत कुछ ऐसा है जो अनकहा है

बहुत कुछ ऐसा है जो उलझा-उलझा सा है

बहुत कुछ ऐसा है जो अनबूझा है

पर शायद वक़्त हाथ से फिसल रहा है..... और जब तक मैं जान पाउंगी तब तक इन हथेलीयों में झूरियों के अलावा और कुछ नहीं मिलेगा .....

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