Monday, January 11, 2010

इस शहर में

इस शहर में

ऐतबार किस पर करें
और किस पर नहीं
झूठ के दामन में
फरेब छिपा है
सच का इस शहर में
कोई हमदम नहीं




मैला सा दिल है
अजनबी चेहरे हैं
इस बस्ती में
इंसां, इंसां नहीं
मिलते हैं सभी अपनेपन से
मगर आंखों में वो सच्चा पानी नहीं
कब क्या कर जाये कोई
इस शहर में
आदमी की फितरत का
खुद आदमी को इल्म नहीं

हर गली के मोड़ पर
बे_आसरा फिरती है ज़िन्दगी
कहने को इस शहर में
आशियाने है कई...

1 comment: