इस शहर में
ऐतबार किस पर करें
और किस पर नहीं
झूठ के दामन में
फरेब छिपा है
सच का इस शहर में
कोई हमदम नहीं
मैला सा दिल है
अजनबी चेहरे हैं
इस बस्ती में
इंसां, इंसां नहीं
मिलते हैं सभी अपनेपन से
मगर आंखों में वो सच्चा पानी नहीं
कब क्या कर जाये कोई
इस शहर में
आदमी की फितरत का
खुद आदमी को इल्म नहीं
हर गली के मोड़ पर
बे_आसरा फिरती है ज़िन्दगी
कहने को इस शहर में
आशियाने है कई...
bahut khoob...........
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