Friday, January 8, 2010

मुद्दत हुई है माना
उस घर को उजड़े हुए
यादों की ज़मीं पर
बसता एक शहर अब भी है
खंडर बन गयी है ईमारत
गूंजता सन्नाटे में
एक फ़साना अब भी है
उजड़े चमन में
फूलों के रंग फीके हो चले
महकते हुए सुबोह-शाम अब भी है
ज़िन्दगी की जद्दोजहद में
चाहे खाक हो गया रिश्ता
सुलगती हुई सी राख अब भी है.....

1 comment:

  1. maza aa gaya....muddat baad kisi ki lekhni me dil rama hai...jaise bacpan ki khoi gudiya mil gayi ho....khub likha hai...mureed ho gaya hun aapki lekhni ka....nice

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