Wednesday, January 20, 2010

यह जो धुंद की गहरी चादर


यह जो धुंद की गहरी चादर
आसमान को अपने में समेटे हुए
वक़्त के रहते
छट जाएगी....

उस धुंद का क्या
जो मन मस्तिष्क को हैं
धुंदला किये हुए
यह धुंद है
झूठे दोगुले आचार विचार और संस्कारों की
जकड़े हुए है जो
इंसान को
धुंदली धुंदली सी बेड़ियों में
परत दर परत
गहराती जा रही है
यह धुंद क्या कभी छटेगी
इस धुंद को
चीर कर
क्या कभी सही मायनो में रौशनी उभरेगी?

1 comment:

  1. socho toh dhundh hai
    yeh socho toh nahi
    mun ka deep jalaye rakho dost
    aur dekhna sab ho jayega sahi

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